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मेरे दोस्त

SANJEEV_SAROJ
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Unnamed4 years ago
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Chapter 1 - Unnamed

आज मेरे ऑखो मे फिर से ऑशुओ कि बरसात आयी ।

कुछ हो न हो।

पर सच कहू आज वह स्कूल के बिते दिन की मुझे फिर‌ से याद आयी।

मै रो पडा़ निशा की पल्लूओ मे ।

सच कहू ओ मुलाकात मुझे बहुत सताई , बहुत रुलाई।

रवि को आते देख कर दिल में उमंग जगती थी।

सच कहू अब वही घूटन सी लगती है ।

आज भी याद है मुझे

वह साथ में रोटियों का खाना , झगड़ना और कभी पाडे , अनुज और किशन को चिढ़ाना ।

जितना शांत था। निशांत उसके विपरीत विकास की निशानी थी।

मरुस्थल में भी बर्फ पडा़ दे ऐसी शेखर की जुबानी थी।

खुश रहे सभी मेरे दोस्त ऐसी दुआ करता हूं ।

और मैं यहीं अपनी कलम के साथ विश्राम करता हूं।

---- संजीवन