आज मेरे ऑखो मे फिर से ऑशुओ कि बरसात आयी ।
कुछ हो न हो।
पर सच कहू आज वह स्कूल के बिते दिन की मुझे फिर से याद आयी।
मै रो पडा़ निशा की पल्लूओ मे ।
सच कहू ओ मुलाकात मुझे बहुत सताई , बहुत रुलाई।
रवि को आते देख कर दिल में उमंग जगती थी।
सच कहू अब वही घूटन सी लगती है ।
आज भी याद है मुझे
वह साथ में रोटियों का खाना , झगड़ना और कभी पाडे , अनुज और किशन को चिढ़ाना ।
जितना शांत था। निशांत उसके विपरीत विकास की निशानी थी।
मरुस्थल में भी बर्फ पडा़ दे ऐसी शेखर की जुबानी थी।
खुश रहे सभी मेरे दोस्त ऐसी दुआ करता हूं ।
और मैं यहीं अपनी कलम के साथ विश्राम करता हूं।
---- संजीवन