उसकी आंखों में वो नशा है , जिसमें खुद को भुलाकर डूबने को जी चाहता है ,
वक्त को ख़ामोश कर उसको अदब के साथ सुनने को जी चाहता है ,
कुछ इस कदर बसी है ,
वो मेरी रूह में हर पल कि अब हक़ीक़त में ना सही ,
उसे हर पल ख्वाबों में हि बुलाने को जी चाहता है ।
काश तुम चांद और मैं सितारा होता , आसमां में इक आशियाना हमारा होता ,
लोग तुम्हें दूर से देखते मगर पास से देखने का हक सिर्फ हमारा होता ,
वो मिलती भी थी तो मुझे कुछ इस तरह , जैसे चांद को चांदनी मिलती हो उस तरह ,
वो मिलकर मुस्कुराती भी थी तो कुछ इस तरह , जैसे खोए हुए बच्चे को उसकी मा मिले कुछ इस तरह ,
वो मिल कर दूर गई भी तो कुछ इस तरह , जैसे सूरज को उसकी रोशनी कभी मा मिले उस तरह ।
ना जाने क्यूं ?