क्या हम सच में नारी दिवस मना रहे हैं, या
एक दिन" हैप्पी वूमेन डे" स्टेटस पर लगा रहे हैं
क्या हम सच में आजाद हैं, या
दिखावे के लिए *इंडिपेंडेंस डे* मना रहे हैं
चिंता लगी रहती है हमें,
यदि एक दिन हमारी बहन लेट हो जाए
और बात हम "वूमेन एंपावरमेंट" की उठा रहे हैं
क्या हम सच में वूमेन डे मना रहे हैं ।
कि कहीं कोई हमारी बहन बेटी रेप का शिकार हो रही है
तो कहीं कोई नारी चारदीवारी के भीतर ही ,
भीतरमार हो रही है।
कहीं दहेज के लिए सताया जा रहा है, तोह
कहीं घरेलू हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।
नहीं बर्दाश्त होती मुस्कुराहट किसी से,
कहीं उसकी सुंदरता को जलाया जा रहा है
सच कहूं तो नहीं है साहस उसमें,
वो तेजाब का सहारा लिए हुए आ रहा है, और
फिर इंसाफ के नाम पर बड़ा सताया जा रहा है
क्या सच में वह मैन डे मनाया जा रहा है।
हजारों कानून बना दिए,फिर भी क्या न्याय मिल रहा है उनको,,,
फेमिनिज्म भी सही है फिर भी क्या अधिकार मिल रहा है उनको,,,,,
कि वो चल सके रात में अकेली और
हमें भी फ़िक्र न हो कि ,हमारी बहन घर नहीं पहुंची
क्या ऐसा माहौल बन रहा है ,या
दिखावे का ही वूमेंस डे बन रहा है।
कि जो मिले हैं अधिकार नारी को
क्या उनका सही इस्तेमाल हो रहा है
नारी को पूजने वाले का भी अपमान हो रहा है
जीवन में उतार-चढ़ाव तो आता ही रहता है
क्यों वो रिश्तो का मंजर कटघरे में खड़ा है
क्या सच में अधिकारों का उल्लंघन हुआ है ,या
जो दिए हैं अधिकार उनका फायदा उठाया जा रहा है
क्या सच में women day मनाया जा रहा है।
नारी को तो भगवान भी नहीं समझ सका
मैं तो फिर भी इंसान हूं
लिख दिया हो मैंने कुछ गलत तो बताना
मैं खुद को सुधार लूंगा,
कैसे मनाते हैं नारी दिवस यह भी सब को बताऊंगा।
जिस दिन हम अपनी बहन बेटियों को कह सकें,
कि तुम जाओ जहां जाना चाहती हो और
उनके जाने के बाद हमें उनकी चिंता ने हो,
मैं उस दिन नारी दिवस मना लूंगा,
तब तक,
मैं Naresh panghal यूं ही अपनी रचना में आवाज
उठाऊंगा।