Chereads / द किंग'स अवतार / Chapter 19 - बादशाह (चार)

Chapter 19 - बादशाह (चार)

"लय...लय..." भूमि सप्तम और अन्य लगातार इसे अपने दिमाग में दोहरा रहे थे। उनकी आंखों के सामने न तो मकड़ी बादशाह था न ही कोई लक्ष्य जिस पर हमला करना था, बस अपनी कुशलता का प्रयोग कब करना था यही उनके दिमाग में चल रहा था।

एक के बाद एक सफलता भरे दौर के बाद, चारों खिलाड़ी खुश महसूस कर रहे थे। क्या उन्होंने आखिर में समझ लिया था? वैसे तो वह कह नहीं सकते थे कि वह कैसा महसूस कर रहे थे, पर उन्हें लग रहा था कि वह सही थे और अपनी कुशलता का सही समय पर प्रयोग कर पा रहे थे।

ये क्सिउ के पास इस समय वह कुशलता नहीं थी कि वह उन लोगों का ख्याल रख पाता। "जाओ, जाओ, जाओ" कहने के बाद वह मकड़ी बादशाह के चारों तरफ घूमने लगा और छोटी मकड़ियों को मारने लगा।

दाएं और बाएं मारने के बाद, बिना नाकाम हुए वह छोटी मकड़ियों को मारे जा रहा था। इस समय केवल ये क्सिउ ऐसा कर सकता था। वैसे तो वहाँ और खिलाड़ी भी थे जिनके पास इस दर्जे की कुशलता थी, पर इस नए सर्वर में उनके हथियार अभी भी केवल 10 वे दर्जे के थे। वह छोटी मकड़ियों को एक बार में नहीं मार सकते थे। अगर एक छोटी मकड़ी को मारने में दो वार करने पड़ रहे थे तो भी ये क्सिउ उन्हें अकेले साफ करने के लिए काफी नहीं था।

"अपना ध्यान रखो और ध्यान लगाए रहो। तुम लोग इसे कर सकते हो" ये क्सिउ ने फिर से याद दिलाया। उसे साफ तौर पर पता था कि इस तरह के बार-बार मशीनी बर्ताव से वह बड़ी आसानी से सुन्न पड़ सकते थे। अगर उनका दिमाग थोड़ी देर के लिए भी भटका तो हादसा हो सकता था।

भूमि सप्तम ने उनके दिमाग को भटकने नहीं दिया। उसने सबका ध्यान अपने साथी की हरकतों पर लगा दिया था। उनके पास समय नहीं था कि वह चिंता करें कि विकट देव क्या कर रहा है जबकि वह सीधे जान रहे थे कि वह छोटी मकड़ियों को वो बड़ी कठिनाई से मार रहा था। इसके साथ ही एक छोटी सी गलती और वह सब मर सकते थे।

मकड़ी बादशाह की जीवन रेखा आधी हो चुकी थी।

भूमि सप्तम लगातार एक ही तरह के काम को करता जा रहा था और उसकी लय भी बहुत तेज थी। उसे लगा जैसे उसकी उंगलियां थोड़ी सख्त हो गई थी। उन सब को चिंता होने लगी की वह लगातार बटन दबा पाएंगे या नहीं। भूमि सप्तम ने विकट देव की स्थिति पर गौर किया। 

विकट देव अभी हर तरफ उड़ रहा था। मकड़ी बादशाह एक बार फिर छह अंडे एक बार में देने को तैयार था।

6 मकड़ी के अंडे। उनके बाहरी आवरण को तोड़ने के बाद बिना किसी कारण के वह एक लक्ष्य चुन लेते थे कूदने के लिए। विकट देव का युद्ध भाला, गाढ़े काले रंग का था। बस उसका आगे का हिस्सा छाते की तरह था, जिसमें थोड़ी रोशनी सी निकलती थी। एक ठंडी रोशनी की चमक से वह छोटी मकड़ियों को मार रहा था, जिससे उनकी चीखें निकल रही थी और वह उसी जगह मर जा रहे थे। 

"बहुत अच्छा तो नहीं है" भूमि सप्तम का दिल बैठ गया। उसने अपनी आंखों के कोने से देखा कि एक छोटी मकड़ी बहुत तेजी से उड़कर सूर्यास्त मेघ के पास पहुंच गई थी। पर विकट देव बहुत दूर था और ऐसा नहीं लग रहा था कि वह समय पर पहुंच पाएगा।

अंत में उन्होंने सिर्फ एक तेज धमाके की आवाज सुनी और छोटी मकड़ी ज्वाला में बिखरती हुई छोटे-छोटे टुकड़ों में फैल गई।

"क्या हुआ?" भूमि सप्तम ने तेजी से पूछा। यह तो अच्छा था कि वो अभी तक अपना काम भूला नहीं था। उसके हमले अभी भी सटीक थे।

"ऐसा लगा जैसे किसी ने गोली चलाई हो" भूमि सप्तम ने सोचा। पर उस समय उन्होंने सिर्फ छोटी मकड़ी को देखा, उन्होंने विकट देव की हरकतों पर कोई गौर नहीं फरमाया। उस लंबी दूरी की हमले की शुरुआत के बारे में सोचकर उसने तय कर लिया कि ये खिलाड़ी एक दूसरे वर्ग का हथियार अपने साथ लेकर आया था।

भूमि सप्तम ने एक बार फिर आश्वासन दिया पर जब उसने अपने साथियों को देखा तो उसने पाया कि वह सभी ध्यान देकर अपने अपने कामों में लगे हुए थे। उनके दिमाग एक बार भी भटक नहीं रहे थे। भूमि सप्तम ने अचानक पाया कि अपने उस भटकाव के लम्हे में, उसकी परेशानी और व्यथा हल्की कम हो गई थी।

पर उसी समय, भूमि सप्तम ने अपने किसी साथी को अपने अनुभव के बारे में बताने की हिम्मत नहीं की। अब अगर सब थोड़ा-थोड़ा भ्रमित हो जाते तो कौन जाने क्या हो जाता?

"आशा करता हूँ कि कोई हादसा नहीं हुआ है..." भूमि सप्तम ने खामोशी से अपने दिल में सोचा।

पर इस लम्हे में सुषुप्त शेखर ने महसूस किया जैसे उसकी सीमा पहुंच चुकी थी। उसके दोनों हाथ एकदम से कड़े हो गए थे और उसमें हल्की सी भी लचक नहीं रह गई थी। वह यह भी नहीं जानता था कि उसने अपना काम पूरा कर लिया था या नहीं। उसकी आंखें स्क्रीन पर एक जगह ठहर सी गई थी। अचानक उसने महसूस किया उसमें और स्क्रीन में दूरी बढ़ गई थी और हर चीज धुंधली दिखाई दे रही थी।

"भावनाएं, मुझे भावनाएं याद रखनी है..."

सुषुप्त शेखर ने खुद को फिर से याद दिलाया। वह बहुत ज्यादा दबाव में था और गलतियां कर रहा था। वह जानता था कि उसके साथी उसके बारे में काफी हद तक गलत विचार रखते थे। इससे भी ज्यादा वो नहीं चाहता था कि विकट देव की नजरों में गिर जाए।

अच्छे से खड़े रहो सुषुप्त शेखर ने अपने दांत पीसे और तैयार हो गया। शुरुआत में मकड़ी बादशाह की सेहत बहुत तेजी से गिर रही थी। पर अब वह इतना धीरे क्यों महसूस हो रही थी? इतने समय के बाद भी अभी भी एक तिहाई कैसे बची है? क्या मैं सही में अंत तक रह पाऊंगा?

जब भूमि सप्तम कुछ भटका तो थोड़ा सा आराम भी कर पाया। पर जब सुषुप्त शेखर थोड़ा सा भटका उसका दबाव और बढ़ गया। अंत में क्या हुआ ये मायने नहीं रखता, पर दोनों खिलाड़ियों ने अभी तक कोई गलती नहीं की थी। उनके बीच में इतना तालमेल था जैसे मानो उन्हें किसी रस्सी से बांधा गया हो।

बस इसी समय में वरुण लहर अचानक से चिल्लाया।

उसने गलती कर दी थी।

जब वे सब शुरु-शुरु में घुसे थे तो वह सबसे धीरे था और लय भी नहीं पकड़ पा रहा था। पर इतने समय तक संभाले रखने के बाद आखिर उसने गलती कर दी। पहले की तरह ही उसने बहुत ही तेजी से काम लिया। वैसे तो मकड़ी बादशाह अभी भी जकड़ा हुआ था पर सुषुप्त शेखर चला गया था, फिर क्या? क्योंकि वरुण लहर ने बहुत ही तेजी से कार्य किया था, भूमि सप्तम की कुशलता अभी भी ठंडी पड़ी थी। उसके पास और कोई कुशलता नहीं थी कि वह मकड़ी बादशाह को फिर से बाँध सके।

चारों खिलाड़ियों के दिल बैठ गए जैसे हाथ से जली हुई राख गिरती है। वह सब इस आशा में थे कि जानकार कोई जादू करेगा और उन्हें बचा लेगा। पर अंत में उन्होंने देखा कि मकड़ी बादशाह ने अपनी तशरीफ़ उठाई और दुर्भाग्यवश 8 अंडे एक बार में दे दिए।

सब खत्म हो चुका था। चारों ने अपनी उम्मीदें त्याग दी। सुषुप्त शेखर ने अपनी कुशलता का इस्तेमाल कर लिया, उसके बाद वह सिर्फ दुखी होकर भूमि सप्तम को देख पा रहे थे।

भूमि सप्तमी के पास और कोई कुशलता नहीं थी, उसके पास कोई उपाय नहीं था कि अब क्या करना था। मकड़ी बादशाह से अपना वश खोने के बाद वह क्या कर सकता था? यह वह घटना थी जिसको उसने नहीं देखा था।

"भूमि सप्तम रास्ते से हट जाओ"

इस दुख की घड़ी में, एक आवाज ने फिर से उनके अंदर आशा की किरण जगाई। भूमि सप्तम तुरंत उस रास्ते से हट गया बिना किसी झिझक के। एक युद्ध भाला हवा में लहराता हुआ आया। विकट देव ने नागदंत का इस्तेमाल करके मकड़ी बादशाह को खंजर भोंक दिया था।

लकवे वाला अवस्था आ चुकी थी पर क्योंकि कोई सँभालने वाला नहीं था इसलिए 8 छोटी मकड़ियां इधर-उधर सब को काटने के लिए बिखर गई। हर एक आदमी नुकसान पर था। उन्हें नहीं पता था कि उन्हें मकड़ी बादशाह पर लगातार हमला करते रहना था या छोटी मकड़ियों को कैसे संभालना था। अंत में उन्होंने देखा कि विकट देव जिसने अभी अभी नागदंत का इस्तेमाल करके दो कदम आगे बढ़ा था। उसके हाथ में जो भाला है वह आश्चर्यजनक रूप से दो भागों में टूट गया था। दोनों हाथों में दो अलग हिस्से थे और दोनों हाथ एक साथ आगे बढे और मकड़ी बादशाह को पीछे खींच लिए। 

"ह्म्फ" विकट देव ने अपने दोनों हाथ उठाए। मकड़ी बादशाह ने अपना सर उठाया और इस अवस्था का फायदा उठाते हुए वो पीछे की तरफ पलट गया। एक लोहे के पुल से वह फिर से मकड़ी बादशाह को अपने उपर खींच लिया।

कुश्ती का कौशल धोबी पछाड़।

यह कुशलता ना केवल लक्ष्य को नुकसान पहुंचाती है पर ये काफी देर तक एक ही जैसी भावना राक्षस के मन में बैठा देती है। विकट देव ने धोबी पछाड़ से लहर बना दी जो सारे आठों मकड़ियों को लगी। छोटी मकड़िया पलट गई और उल्टी चलने लग गई। टकराने की आवाज के साथ सब लाश में बदल गई। 

"भूमि सप्तम" ये क्सिउ चलाया। भूमि सप्तम पहले से ही तैयार था। उसने तुरंत ही सब को लात मारी और मकड़ी बादशाह फिर से लकवे वाली हालत में पहुंच गया था। 

"सभी लोग होशियार हो जाओ। मैं हर एक आदमी को हर समय नहीं बचा सकता हूँ" ये क्सिउ ने कहा।

Latest chapters

Related Books

Popular novel hashtag