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Chapter 19 - हम यहां और नहीं रह सकते

"दीदी ,जब तुम ठीक हो जाओ, तो तुम हमारे सीनियर की कंपनी में क्यों नहीं काम करतीं ? वेतन ठीक-ठाक है और हम साथ में एक साथ काम कर सकते हैं" , शिया ची ने उत्साहपूर्वक कहा । 

 वह परिवार के भविष्य के बारे सोच रहा था । 

अब वे एक साथ काम करने जा रहे थे और उन दोनो के वेतन से वक्त सुधरनेवाला था ।

जिंगे ने अपनी ओवरनाईट बैग पैक करते हुए जवाब दिया, " मेरी इच्छा नहीं है कि मैं 9 से 5 की नौकरी करुं"। 

शिया ची ने भौंचक्का होकर पूछा, " तो तुम्हारी क्या इच्छा है ?" 

"ठीक है , चलो घर चलते है," जिंगे ने स्पष्टीकरण न देते हुए कहा । उसने अपना बैग उठाया और बाहर निकल पड़ी । 

शिया ची ने जल्दी से बाकी सामान ले जाने में मदद की और दोनो घर जाने के लिये बस में बैठ गए।

कई दिन आराम करने के बाद , जिंगे काफी बेहतर महसुस कर रही थी । 

बस में, शिया ची ने खुशी से कहा, " दीदी , तुम्हारे अस्पताल से घर आने के मौके पर जश्न मनाने के लिए पिताजी ने आज सुबह एक पूरा चिकन खरीदा,ताकि हम चिकन सूप का आनंद ले सके"।

 जिंगे अपने चाचा के हाथ के खाने के बारे में सोचकर मुस्कुराई । 

उसे खाने का ज़्यादा शौंक नहीं था, पर जब भी उसके चाचा खाना बनाते, उस समय वह सामान्य से ज्यादा खाती । 

ऐसा इसलिये था, क्योंकि उनके हाथ के खाने से उसे घर की याद आती थी …..

जिंगे ने खिड़की के कांच पर अपना सर टिका दिया, कांच छूने में बर्फ की तरह ठंडा था; उसका दिल उदास हो गया । अगर उसके चाचा और शिया ची उसे सहारा नहीं देते उसका जीवन पिछले सालों मे नरक हो जाता । 

उन्होने उसे परिवार जैसा ही सुख दिया,भले ही उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी, लेकिन वे एक दूसरे के साथ थे । 

अब जबकि उसकी याददाश्त वापस आ चुकी थी, उसने अपने आप से वादा किया कि वह उनकी दया का ऋण चुकायेगी । 

जिंगे ने पैसे कमाने का निर्णय कर लिया था और इसके लिये उसने कोई कमी भी नहीं थी। 

और उसे कोई 9 से 5 की नौकरी नहीं करनी थी। ऐसा नही था कि वो शिया ची के सीनियर की कंपनी को बेकार समझती थी, पर उसके दिमाग में इससे कुछ बेहतर था….. 

कई स्टेशनों से गुज़रने के बाद बस आखिरकार उनके इलाके में पहुंच गई ।

वे बस से उतरे और सीधे घर के लिए निकले । 

उनके आवासीय क्षेत्र में शहर के निचले दर्ज़ के लोग जैसे सस्ते विदेशी मजदूर, लगभग बेघर, परिवार के छोड़े हुये वरिष्ठ और दुर्बल भी रहते थे ….

वे लोग जिनका रोज का जीवन एक संघर्ष था । 

इन लोगों के लिए जीवन आनंद लूटने के लिए नहीं, किसी कठिन लड़ाई के लिए था । 

यही नहीं, उस क्षेत्र के निवासियों ने अपने मन को मना लिया था । धीरे धीरे, उन्होने उस वास्तविकता के सामने घुटने टेक दिये और अपने आप को उस स्थिति से निकालने की जद्दोजहद बंद कर दी,वे यही सोचने लगे कि यही उनकी ज़िन्दगी है ।

"ची , हमारा पहला लक्ष्य है कि हम रहने के लिए एक नयी जगह खोजें , अब हम यहां नहीं रह सकते," जिंगे ने अचानक कहा।

शिया ची ने जिंगे को अजीब नजरों से देखा, उसे लगा उसने गलत सुना है । उसने आखिरकार जवाब दिया, " लेकिन हमारे पास पैसा नही है …."

"वह मुझ पर छोड़ दो ।हमें जल्दी ही नई जगह पर रहने के लिए जाना चाहिये, क्योंकि यह जगह तुम्हारे जैसे महत्त्वाकांक्षी युवक के लिए सही नहीं है । यह जगह चाचा के सेहत के लिए भी हानिकारक है," जिंगे ने अपने सामने लोगो के समूह को कुछ फिट की दूरी पर देखते हुए बोला ।

समूह से एक कर्कश आवाज आई, "क्या मैनें तुमलोगो को सामान बांधने नहीं बोला था? या हम तुम्हारा सामान बांध दें ?" 

शिया ची ने चिंता के स्वर में कहा, " यह क्या हो रहा है , इतने सारे लोग हमारे घर के सामने क्यों जमा हुएं हैं ?" 

जिंगे आगे की ओर दौड़ी और भीड़ के बीच से उसने रास्ता निकाला । उसने देखा कि चाचा उनके मकान मालिक के साथ बहस करते हुए देखा। 

 वास्तव में यह बहस नहीं थी, क्योंकि चेंगवू अपने शांत स्वभाव के कारण चुपचाप खड़ा था और मकान मालिक उसपर जोर से चिल्ला रहा था। मकानमालिक सांस लेने के लिये रुका, तब उसने कमजोर स्वर में कहा, "आप हमें अचानक स्थानंतरित करने को कैसे बोल सकते है ?ऐसा भी नही है कि हमनें आपका किराया नही दिया है"।

 "बूड्ढे,अपनी ज़बान संभालकर बाते कर और मुझपर झूठा आरोप मत लगा,मैनें बोला है कि तुम्हारे जाने पर मैं तेरे पैसे वापस दे दूंगा।आज तुझे यह घर खाली करना होगा"। मकानमालिक ने चेंगवू को धक्का दिया और उसका सामान दरवाज़े से बाहर फेंकने लगा ।

"भगवान के लिए रुक जाओ!" चेंगवू मकानमालिक को रोकने के लिए आगे बढ़ा, पर मकानमालिक ने उसे ज़ोर का धक्का देकर हटा दिया। कुछ पल रुकने के बाद उसने डाइनिंग टेबल के एक कोने पर लात मारकर पूरे टेबल को चिकन सूप के बर्तनसमेत ज़मीन पर गिरा दिया।

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