मेरा नाम अर्जुन है और ये कहानी मेरे एक दोस्त की है जिसका नाम गौरव है. मैं और गौरव एक ही स्कूल में एक ही क्लास में पढ़ते थे और कॉलेज भी हमने एक साथ ज्वाइन किया. ये बात है जब हमारा 12 वीं का रिजल्ट आया था. मैं और गौरव दोनों अच्छे नंबरो से पास हो गए थे और हम बहुत खुश थे. उस दिन हमने रात को खूब पार्टी की. अगले दिन जब गौरव उठा तो उसके पैरो में सूजन थी. ये देख गौरव फ़ौरन डॉक्टर के पास चेक करवाने चला गया. उसने सोचा था कि पार्टी में शायद पैर में मोच आ गयी होगी जिस वजह से सूजन आ गयी.
डॉक्टर ने गौरव का पैर देखा और फ़ौरन कुछ टेस्ट करवाने के लिए बोल दिए. जब टेस्ट के रिजल्ट आये तो डॉक्टर ने गौरव को अपने पास बुलाया और बताया कि उसे नेफ्रोटिक सिंड्रोम है जिसकी वजह से बहुत जल्द उसकी दोनों किडनी खराब हो जाएंगी. डॉक्टर ने बताया कि गौरव स्ट्रांग दवाईया खानी पड़ेंगी वरना कुछ ही दिनों में दोनों किडनी खराब हो जाएंगी.
जब डॉक्टर ने ये सब बताया तो गौरव का दिल बैठ गया. उसने फ़ौरन अपनी दवाई खानी शुरू कर दी, उस समय गौरव सिर्फ 18 साल का था. उस दवाई के कई साइड इफ़ेक्ट थे. उसका चेहरा सूज जाता था, पूरे बदन पर धब्बे से हो गए थे और वो इस ज़िन्दगी से बहुत परेशान था. आखिरकार, गौरव ने अपनी ज़िन्दगी से हार मान ली और दवाईया खानी बंद कर दी. कुछ दिनों बाद सुबह के वक़्त गौरव की माँ ने देखा कि वो बेहोश है, उसे फ़ौरन हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ पता चला कि गौरव की दोनों किडनी खराब हो चुकी है. जब तक कोई किडनी डोनेट करने वाला नहीं मिलता तब तक गौरव को डायलिसिस पर रखना था. डायलिसिस वो प्रक्रिया है जिसमे व्यक्ति के शरीर में एक पाइप डालकर उसके खून को साफ़ किया जाता है. इस प्रक्रिया में काफी दर्द भी होता है. गौरव को हफ्ते में 3 दिन डायलिसिस करवानी पड़ती थी.
इसी तरह 6 महीने बीत गए. गौरव और उसकी माँ इस सब से बहुत परेशान हो चुके थे. दिक्कत ये थी कि गौरव का खून O- ( O Negative ) था और ये ब्लड ग्रुप आसानी से नहीं मिलता. एक दिन गौरव की माँ उदास अपने ऑफिस में बैठी हुई थी कि तभी एक औरत जो कि उनकी सह कर्मचारी थी, उन्होंने गौरव की माँ को पुछा "क्या हुआ…इतना उदास क्यों बैठी हो?" गौरव की माँ ने रोते हुए कहा कि " मेरी कोई सहायता नहीं कर सकता, मेरा बेटा बीमार है, दोनों किडनी खराब है और मुझे कोई किडनी डोनेट करने वाला नहीं मिल रहा." तभी उस औरत ने कहा कि गौरव का ब्लड ग्रुप क्या है, गौरव की माँ ने बताया उसका ब्लड ग्रुप O- ( O Negative ) है जो कि मिल नहीं रहा.
तभी उस औरत ने कहा कि उसका ब्लड ग्रूप भी O – है और वो किडनी डोनेट करने के लिए तैयार है. ये सुनकर गौरव की माँ ख़ुशी से रो पड़ी. 5 दिनों बाद ऑपरेशन हुआ और गौरव काफी अच्छा महसूस करने लगा. जिस औरत ने गौरव को अपनी किडनी डोनेट की थी उसके अपना कोई बच्चा नहीं था और इसीलिए वो चाहती थी गौरव ये ज़िन्दगी जिए.
जब मैंने गौरव के बारे में ये सब सुना तो मैंने यही सीखा कि ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं. ज़िन्दगी मुश्किल है, आसान भी, इसमें दर्द है और ख़ुशी भी, इसमें प्यार है और नफरत भी. हम आज है और कल नहीं, इसलिए ज़िन्दगी को पूरे दिल से जियो, तुम जो करना चाहते हो आज ही कर लो क्यूंकि ज़िन्दगी का असली मतलब है "अब". जो करना है वो करो अब वरना ऐसा ना हो कि ज़िन्दगी के आखिरी पलों में तुम सोचो कि काश मैं अगर वो कर लेता तो ज़िन्दगी शायद कुछ अच्छी हो सकती थी. हमेशा याद रखिये "ज़िन्दगी…का कोई भरोसा नहीं" !