वो क्या दिन थे जब मैं सोया नहीं करता था जबतक की 2 या 4 बार उसके मैसेज ना पढ़ लूँ। दिक्कत ये थी कि वो मैसेज किया नहीं करती थी और मैं उसे उकसाता था मैसेज करने के लिए। पहले तो यह काम मैंने उसकी तारीफ करते हुए किया। जैसे मैं कोई भी झूठी या सच्ची कैसी भी तारीफ कर दिया करता था। मुझे अंदाज़ा नहीं था कि मैं उसे तवज्जो दे कर के हमारे भविष्य पर लात मार रहा हूँ। अब फिर क्या था वो मैडम तो पहुंच गई 7 वें आसमान पर। अपने बराबर ही ना समझे किसी को भी। पहले जहां इतने आराम से बात करती थी चाहे फोन पे हो या फिर मैसेज के द्वारा पर अब ऐसा नहीं था। मन किया तो मैसेज किया नहीं मन किया तो जाओ भाड़ में। पर मैं भी कौन सा कम था, मैंने भी कई बार उसे अपना असली रंग दिखाया था। अब वो मेरी राग को पकड़ लिया करती थी।
बात शुरू तब से होती है जब मैं पहली बार स्कूल छोड़ कर नए स्कूल में आया था। आगे बैठा करती थी वो, मेरी बात तो छोड़ो भाई, मेरे से बड़े बड़े धुरंधरों को भी उसने भाई ही बना रखा था। मेरा तो कोई चांस था ही नहीं कभी। पर फिर भी ऐसा होता है ना कि जैसे हम भांप लेते हैं कि आगे क्या होने वाला है। मेरे लिए उसे देखने के बाद वैसे कई भांपने वाले कारनामे हुए।